लोक रंगों से सराबोर इंद्रधनुषी प्रस्तुतियों ने मंत्रमुग्ध किया
प्रयागराज सूर्योदयसूर्य (सांस्कृतिक सामाजिक एवं साहित्यिक संस्था), प्रयागराज एवं रानी रेवती देवी सरस्वती विद्या निकेतन इंटर कॉलेज राजापुर प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे 10 दिवसीय विलुप्त हो रहे मिश्रित लोकगीतों की प्रस्तुतिपरक कार्यशाला का समापन "लोक गुलदस्ता" के रूप में विद्यालय के नवनिर्मित सभागार में संपन्न हुआ l जिसका प्रशिक्षण सुप्रसिद्ध लोक गायक एवं उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उदय चंद परदेसी ने दिया था l कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि बांके बिहारी पाण्डेय, प्रधानाचार्य रानी रेवती देवी सरस्वती विद्या निकेतन इंटर कॉलेज राजापुर प्रयागराज तथा विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध भजन एवं ग़ज़ल गायक मनोज गुप्ता एवं सुप्रसिद्ध तबला वादक एवं आकाशवाणी के कार्यक्रम सहायक पंकज श्रीवास्तव तथा प्रशिक्षक उदय चंद परदेसी एवं सचिव सूर्यकांत ने मां सरस्वती जी की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण करके किया l तत्पश्चात संस्था के सचिव सूर्यकांत एवं संस्था के सदस्यों ने अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, अंगवस्त्रम एवं स्मृति चिन्ह प्रदान करके किया lकार्यक्रम का शुभारंभ कार्यशाला में सीखे हुए गीतों के क्रम में प्रतिभागियों ने सर्वप्रथम
गणेश वंदना "गौरी के लाला सुनि ला अरजिया हमार" से किया, तत्पश्चात बारहमासा कजरी "रिमझिम सावन बरसेली बदरिया, गऊवा गऊवा गोरियन गावेली कजरिया" गीत प्रस्तुत कर ऋतुओं का एहसास कराया, तत्पश्चात दादरा जो की बहुत पुराना लोकगीत है और विलुप्तप्राय है "नदिया किनारे मोरा सैया जी के डेरा, मसाल जराए सारी रतिया" प्रस्तुत कर विलुप्त होती हुई परंपराओं को जीवित रखा, इसके बाद "जेकर पिराय वही जाने दूसरा कोई न जाने" सोहर प्रस्तुत किया जिसे महिलाओं ने बहुत पसंद किया, इस भीषण गर्मी को महसूस करते हुए प्रतिभागियों ने झूमर गीत प्रस्तुत किया जिसके बोल थे "टप टप टपके पसीना, गजब गर्मी का महीना" उसके बाद अधर की कजरी "सइयां अइसन करै चकरिया, चिंता ना घरनी घर की" जिसकी विशेषता यह थी कि होंठ पर एक छोटी सी सुई या लकड़ी लगाकर इसे गाया जाता है जिससे कि जीभ आपस में ना मिले, इस गीत में उ,ऊ,ओ,औ,प,फ,ब,भ,म एवं व का प्रयोग नहीं होता है, आपस में एक दूसरे से जीभ ना मिलने पाए इसलिए गीत का नाम आधार की कजरी पड़ा है, जिसे सुनकर दर्शकों को बड़ा आश्चर्य हुआ, गीतों की प्रस्तुति के आखिरी क्रम में होली गीत "होली खेल रहे नंदलाल बोलो सा रा रा रा" ने दर्शकों को अपने स्थान से उठकर झूमने और नाचने पर मजबूर कर दिया lगीतों की प्रस्तुति के पश्चात मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन समय-समय पर होते रहना चाहिए ताकि लोगों को अपनी विलुप्त हो रही लोकगीतों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त हो सके और हम अपनी संस्कृति एवं पारंपरिक लोकगीतों को कभी ना भूले, ऐसे ही युवा वर्ग कार्यशाला के माध्यम से विलुप्त हो रही लोकगीतों का प्रशिक्षण प्राप्त कर इसको जन-जन तक पहुंचाने का कार्य करें और उनको इससे जोड़ने की कोशिश करें l उन्होंने प्रतिभागियों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि जीवन में निरंतर ऐसे ही अभ्यास से आगे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहेंगे तो एक दिन आप अपने जीवन में जो भी लक्ष्य को निर्धारित किया है उसको आप अवश्य प्राप्त कर लेंगे l इसके बाद अतिथियों ने प्रतिभागियों को संस्था का प्रमाण पत्र प्रदान कर उनका हौसला बढ़ाया lप्रतिभागियों के साथ हारमोनियम पर प्रशिक्षक उदय चंद्र परदेसी, बांसुरी पर रवि शंकर, ढोलक पर राजेंद्र कुमार और भुवनेश्वर कांत, बैंजो पर धर्मेंद्र कुमार ऑक्टोपैड पर सुनील मिश्रा ने बहुत सुंदर साथ दिया l मंच संचालन वंदना मिश्रा और सूर्यकांत ने किया l इस कार्यक्रम को सफल बनाने में संस्था के उप सचिव शशिकांत, कोषाध्यक्ष रूबीकांत वर्मा एवं सदस्य रितु वर्मा, अर्चना एवं पारस जैसवार, रमा मॉन्ट्रोज, अंशुला सिंह का विशेष योगदान रहा lप्रतिभागी कलाकारों में प्रमुख रूप से कुमार विश्व रतन सिंह, सृष्टि वर्मा, अरनवकांत, सारंग कुमार, वैष्णवी मनोहर, रेखा शुक्ला, शिवांगी केसरवानी, प्रतिमा मिश्रा, कमला देवी, साक्षी पाण्डेय, कनिष्का गुप्ता, दिवाकर, अरुण कुमार, मीनाक्षी मिश्रा, मनोज यादव, रेनू सिंह, जया पांडे, शिवानी वर्मा, मनीषा चौहान एवं रंजना कुमारी, रंजना त्रिपाठी, रश्मि शुक्ला रही l
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