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शनिवार, 14 जून 2025

"रोटी मुफ्त मिली, पर सोच बिक गई!, पॉलिटिक्स में प्रलोभन की पराकाष्ठा!,

लखीमपुर खीरी के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता राजेश दीक्षित ने कहा कि मेरा स्पष्ट मानना है कि सरकारों का काम लोगों को घर बनवा कर देना नहीं है बल्कि लोगों को इतना सशक्त समृद्ध सुदृढ़ बनाना है कि वे अपने पैसे से अपना घर बनवा सकें। सरकारों का काम मुफ्त राशन बांटना भी नहीं है, वो भी टैक्स पेयर के पैसे से यह समाज में मुफ्तखोरी को स्पष्ट बढ़ावा देना है।

 अपने राजनैतिक हितों के लिए चुनाव वैतरणी को पार करने के लिए मतदाता को यह सब प्रलोभन दिए जाते है। वहीं दूसरी ओर अपने खून पसीने परिश्रम से अपना घर बनवाने वाले मध्यमवर्गीय मतदाता को सीमेंट, सरिया, ईंटें, मौरंग खरीदने के नाम पर प्रत्येक वर्ष लाखों रूपयों की बढ़ोत्तरी का सामना करना पड़ता है, उसका सारा बजट गड़बड़ा जाता है। यह क्वालिटी बनाम क्वांटिटी की लड़ाई है। जन संख्या का बल समाज की बौद्धिक श्रेष्ठता, कार्य निपुणता पर हावी है। भारतीय लोकतंत्र में क्या ट्रेन के पैसेंजर वोट दे कर अपने ड्राइवर का चुनाव करेंगे। क्या यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर का सिलेक्शन स्टूडेंट्स की वोट पावर से होगा न कि उसकी श्रेष्ठ योग्यता या विषय की पकड़ पर। इस देश की गरीबी को कोई भी दूर नहीं कर सकता जहां सरकारें मुफ्तखोरी की प्रतियोगिताएं विभिन्न राजनैतिक दलों में चल रही है। मुफ्त गल्ला पाने के लिए व्यक्ति फोरव्हीलर से राशन कोटे पर आता वही दूसरी ओर देशी शराब के ठेके पर, पानपुड़िया के खोके पर वही व्यक्ति पांच सौ का नोट बड़ी शान  से निकालता है। वह अपने बच्चों की पढ़ाई की किताबें मुफ्त ही में चाहता है। अपने स्वास्थ पर नहीं खर्च करना चाहता है। विडंबना है कि उसे वर्तमान लोकतंत्र में इसकी अनुमति सहमति मिल गई है। देश के विभिन्न राजनैतिक दलों का काम जो इस पर एक स्वस्थ लोकमत तैयार करना है वे इसमें भी पूर्णतया विफल है। अपने राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति केवल सत्ता प्राप्ति के लक्ष्य को ले कर मुफ्तखोरी नशाखोरी को प्रशय दे रहें हैं।

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