✍️ लेखक: अनूप सिंह
संरक्षक — दैनिक जागरण न्यूज़
“ऊपर कोचिंग सेंटर, सामने विद्यालय और नीचे शराब का ठेका — यही है आधुनिक रामराज्य की नवसंहिता!”
जब रामराज्य का सपना दिखाया गया था, तो किसी ने यह नहीं बताया कि उसमें बच्चों की पाठशाला के नीचे नशे का अड्डा भी चलेगा!
लेकिन अब ऐसा होता है — बिल्कुल हमारे लखीमपुर के बेहजम रोड पर।
पी.के. इंटर कॉलेज के सामने, बच्चों के भविष्य के प्रवेशद्वार के ठीक नीचे शराब का सरकारी ठेका।
नियमों की किताब या मज़ाक की डायरी?
शासन की गाइडलाइन साफ़ है — विद्यालय, अस्पताल या धार्मिक स्थल से 100 मीटर की दूरी पर ही शराब की दुकान दी जा सकती है।
लेकिन यहाँ लगता है,
या तो फ़ीते से दूरी नापी गई है, या फायदे से।
क्या प्रशासन की आँखें बंद हैं, या जेबें खुली?
“दीनदयाल” जी का अपमान
यह कोई अकेली शिकायत नहीं है।
राजेश दीक्षित जी, जिन्हें लखीमपुर में “दीनदयाल” कहा जाता है — RSS के वरिष्ठ कार्यकर्ता, कई बार इस पर प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं।
लेकिन नतीजा?
विद्यालय वहीं है, ठेका वहीं है, और प्रशासन — वहीं का वहीं सोया पड़ा है।
जब राजेश दीक्षित जैसे सामाजिक स्तंभों की आवाज़ को अनसुना किया जा रहा है, तो एक आम नागरिक से आप क्या उम्मीद करेंगे?
व्यंग्य, जो ज़िम्मेदारों के गाल पर तमाचा है
अगर सरकार की मंशा वाकई “बच्चों की सुविधा” की है,
तो हमारा निवेदन है —
कृपया विद्यालय की बाउंड्री के भीतर ही एक “बार” भी खोल दीजिए।
ताकि छात्रों को दो कक्षाओं के बीच थोड़ी “ताज़गी” मिल सके,
और सरकार को सीधे क्लासरूम से राजस्व।
फिर तो शिक्षा भी बिकेगी, शराब भी बहेगी —
और नारा बदल कर हो जाएगा:
“शराब भी पढ़ाओ, बच्चों को भी बहलाओ!”
सवाल जो पूछे जाएँगे:
• क्या शासन अब सिर्फ़ रसीदों की भाषा समझता है?
• क्या बच्चों के भविष्य से ज्यादा जरूरी हो गया है ठेके का टेंडर?
• क्या यह प्रशासन की नाकामी नहीं, समाज के भविष्य के साथ धोखा है?
चेतावनी नहीं — जनघोषणा:
विद्यालय जुलाई में खुलने वाले हैं।
यदि तब तक यह ठेका नहीं हटाया गया, तो हम सभी सामाजिक संगठन आंदोलन को विवश होंगे।
और इस बार,
चुप रहना भी अपराध होगा।
क्योंकि:
लड़ाई अब अपनों से है —
और अपनों के लिए है।
अबकी बार,
हम चुप नहीं बैठेंगे।
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