लखनऊ में ज्येष्ठ माह के "बड़ा मंगल" के अवसर पर एक बार फिर आस्था, सेवा और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिला। इस दिन शहर के विभिन्न हिस्सों में भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। यह परंपरा करीब 400 वर्षों से चली आ रही है और आज भी पूरे श्रद्धा और उत्साह से निभाई जा रही है। लखनऊ के अलीगंज स्थित हनुमान मंदिर से इस परंपरा की शुरुआत मानी जाती है। बताया जाता है कि पहला भंडारा गुड़-धानी (गुड़ और सौंफ मिश्रित ठंडा पानी) का कराया गया था। समय के साथ यह परंपरा पूरे शहर में फैल गई और आज प्रदेश के कई हिस्सों में इसका आयोजन होने लगा है.समय के साथ भंडारे का स्वरूप भी बदलता गया। पहले जहाँ केवल गुड़-धानी वितरित की जाती थी, वहीं बाद में शरबत, और अब पूड़ी-सब्ज़ी और अन्य व्यंजन भी प्रसाद के स्वरूप बांटे जाते हैं। यह न सिर्फ धार्मिक आयोजन है, बल्कि सामाजिक समरसता और सेवा का प्रतीक भी बन चुका है.अलीगंज मंदिर में 35 वर्षों से पूजा-पाठ कर रहे जगंर्दा प्रसाद बताते हैं कि पहले हनुमान जी को बेसन के लड्डू और गुड़-धानी का भोग लगाया जाता था। अब समय के साथ परंपरा में बदलाव आया है और सबसे अधिक पूड़ी-सब्ज़ी बाँटी जाती है। पहले भंडारा केवल अलीगंज के पुराने मंदिर तक सीमित था, लेकिन अब हर गली-मोहल्ले में इसका आयोजन होता है। पुजारी बताते हैं कि गुड़-धानी ही हनुमान जी का असली प्रसाद माना जाता है। हालांकि अब इसका चलन कम हो गया है, लेकिन इसका आध्यात्मिक महत्व आज भी उतना ही है। यह प्रसाद न केवल गर्मी से राहत देता है बल्कि इसकी मिठास में सेवा भाव भी घुला होता है.
मंगलवार, 3 जून 2025
लखनऊ में 400 साल पुरानी परंपरा "बड़ा मंगल" पर भंडारे की अनूठी सांस्कृतिक झलक

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