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शनिवार, 18 जनवरी 2025

महाकुंभ में कबूतर वाले सन्यासी बाबा

महाकुम्भ नगर महाकुंभ मेले में देश के हर कोने से साधु-संतों का जमावड़ा लगा है. हर दिन विचित्र और दिलचस्प साधु आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. इन्हीं में से एक हैं जूना अखाड़े के महंत राजपुरी जी महाराज. लोग इन्हें प्यार से ‘कबूतर वाले बाबा’ कह रहे हैं. क्योंकि वह पिछले 9 सालों से अपने सिर पर कबूतर लेकर घूम रहे हैं. कुंभ पहुंचने वालों लोगों में से जो भी बाबा को और उनके सिर पर बैठे कबूतर को देखता है तो रुके बिना रह नहीं पाता. कबूतर बाबा राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के रहने वाले हैं. उनके सिर पर हमेशा कबूतर बैठा रहता है, जो हिलाने पर भी वह वहां से नहीं हटता.  बाबा ने कहा कि जीव सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है. उन्होंने कहा कि कबूतर का नाम ‘हरि पुरी’ है. इसे मेरे साथ रहते हुए 9 साल हो गए. इस संसार में जीव ही शिव है. जीव की सेवा शिव की सेवा है. जीव हो, मनुष्य हो, सबसे प्रेम करना चाहिए. प्रेम के बिना कुछ भी नहीं है. हरि पुरी का यह तीसरा कुंभ है. जो यहां दिख रहा है, वह है नहीं. जो नहीं दिख रहा है, वही है. यह हरि पुरी अलौकिक है. अगर यह साधारण कबूतर होता, तो कहीं दाना चुग रहा होता. लेकिन इसका अलौकिक खेल है. इस कबूतर ने स्नान भी किया है.महंत राजपुरी जी बताते हैं कि उन्हें यह कबूतर लगभग नौ साल पहले मिला था, तब यह काफी छोटा था. तब से लेकर अब तक ऐसा कोई वक्त नहीं आया, जब वह इस कबूतर के बिना रहे हों. उन्होंने बताया कि चूंकी यह एक दैवीय घटना थी. इसलिए इस कबूतर का नाम उन्होंने हरिपुरी जी रख दिया. तब से लेकर अब तक सभी इस कबूतर को हरिपुरी जी के नाम से ही पुकारते हैं. उन्होंने कहा कि जब से यह मेरी जिंदगी में आया है, तब से उनका नाम अब महंत राजपुरी की जगह लोगों ने कबूतर वाले बाबा रख दिया है.महंत राजुपरी बताते हैं कि इस कबूतक का वह विशेष ख्याल रखते हैं. इसके लिए अलग से मावा प्रसाद बनवाते हैं, जिसमें खास किस्म का ड्रायफ्रूट्स होता है. दो बार अपने हाथों से इस कबूतक को खिलाते हैं. इसके साथ ही जब इसे पानी पीने की इच्छो होती है तो इसे स्वंय वह पानी भी पिलाते हैं.महंत राजपुरी बताते हैं कि महाकुंभ में पूरी दुनियां से लोग आ रहे हैं. बात यदि हरिपुरी जी की करें तो उनके साथ तीन बार कुंभ वह कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि उम्र का प्रभाव इस कबूतर पर भी अब दिखता है. उन्होंने कहा कि संगत में श्रद्धालु मुझसे कम और हरिपुरी जी से अधिक मिलने आते हैं.महंत राजपुरी बताते हैं कि दिनभर हरिपुरी जी उनके माथे पर ही विराजमान रहते हैं. उन्होंने कहा कि यदि बीच में कहीं उड़कर चला जाए तो थोड़ी देर बाद वह वापस आ जाता है. रात को सोने के समय भी वह महंत के पास ही सोता है. महंत राजपुरी ने कहा कि सुबह से ही स्नान ध्यान से लेकर सभी दिनचर्या में वह मेरे साथ रहता है.

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