Breaking

गुरुवार, 16 जनवरी 2025

रेलवे और विकास: जनता की सुविधा या व्यापारिक दृष्टिकोण?

भारत में रेलवे का इतिहास अंग्रेजों के शासनकाल से जुड़ा है। अंग्रेजों ने 1853 में पहली रेल सेवा शुरू की, और अगले 30 वर्षों में रेलवे का व्यापक जाल बिछा दिया। यह कार्य उस समय की तकनीकी सीमाओं के बावजूद संभव हुआ, लेकिन इसके पीछे उनकी नीयत का उद्देश्य भारतीय जनता की सुविधा नहीं, बल्कि भारत के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और उन्हें इंग्लैंड भेजना था। उन्होंने खनिज संपदा, इमारती लकड़ी, और अन्य बहुमूल्य संसाधनों को दुर्गम क्षेत्रों से निकालने और व्यावसायिक लाभ के लिए रेलवे का इस्तेमाल किया।

भारत को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो गए हैं, और देश अब "अमृत काल" में प्रवेश कर रहा है। परंतु आज भी रेलवे नेटवर्क का विस्तार उस गति से नहीं हुआ है, जितना अंग्रेजों के समय में हुआ था। हाल के वर्षों में सड़कों के नेटवर्क में काफी सुधार हुआ है। 2014 के बाद ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों तक सड़कें पहुंचाने में तेजी आई, जो आवागमन के साधनों में क्रांतिकारी बदलाव साबित हुआ। अमेरिका जैसे विकसित देशों का विकास भी इसी मॉडल पर आधारित रहा है, जहां सड़कों और आवागमन के साधनों का इंफ्रास्ट्रक्चर पहले तैयार किया गया और उसके बाद देश का विकास हुआ।

*लखीमपुर की रेलवे व्यवस्था: वादे और हकीकत*

लखीमपुर-खीरी, जो उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख जिला है, रेलवे सुविधाओं के विस्तार की प्रतीक्षा में है। 2007 से 2010 के बीच, लखीमपुर-लखनऊ मार्ग पर 24 ट्रेनें चलती थीं। उस समय बड़ी लाइन (ब्रॉड गेज) का प्रोजेक्ट चर्चा में था। इस परियोजना को यात्रियों की सुविधा के लिए पेश किया गया था, लेकिन इसके पीछे असल उद्देश्य रेलवे के परंपरागत मार्गों का बोझ कम करना और मालगाड़ियों का आवागमन सुगम बनाना था।

ब्रॉड गेज बनने के बाद शुरुआती दौर में लोगों में खुशी थी, लेकिन जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि इस परियोजना का लाभ आम जनता को कम, और रेलवे के व्यावसायिक उद्देश्यों को अधिक हुआ। मालगाड़ियों की संख्या बढ़ी, और यात्रियों की सुविधाओं की अनदेखी की गई।

यह स्थिति अंग्रेजों के दौर की याद दिलाती है, जब रेलवे नेटवर्क का उपयोग केवल व्यावसायिक लाभ के लिए किया गया। दुर्भाग्यवश, आज भी रेलवे की योजनाएं अधिकतर मालगाड़ियों के संचालन और व्यापारिक दृष्टिकोण पर केंद्रित होती हैं। दैनिक यात्रियों, खासकर गरीब तबके के लोगों, की जरूरतें और परेशानियां अक्सर नजरअंदाज कर दी जाती हैं।

रेलवे और जनता का उपेक्षित संबंध

आज रेलवे का मुख्य फोकस मालगाड़ियों के संचालन और राजस्व बढ़ाने पर है। जनता के लिए सुविधाएं प्रदान करना प्राथमिकता में नहीं दिखता। नई परियोजनाओं में रेलवे स्टेशनों पर सुविधाएं बढ़ाने, समयपालन में सुधार, और यात्री गाड़ियों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया जाता। इसके बजाय, परियोजनाओं का उद्देश्य मालगाड़ियों के लिए बाईपास मार्ग बनाना और बड़े व्यापारिक हितों को साधना रह गया है।

लखीमपुर जैसे जिलों में, जहां लोगों की एक बड़ी संख्या दैनिक यात्रा करती है, रेलवे को उनकी जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए। रेल सेवाओं में सुधार केवल रेलवे के राजस्व बढ़ाने तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे आम जनता की सुविधा, affordability, और accessibility पर केंद्रित करना चाहिए।

आगे का रास्ता

यदि रेलवे वास्तव में विकास का प्रतीक बनना चाहता है, तो उसे जनता की आवश्यकताओं पर ध्यान देना होगा। मालगाड़ियों के संचालन के साथ-साथ यात्री गाड़ियों की संख्या बढ़ाने, रेलवे स्टेशनों को बेहतर बनाने, और टिकट दरों को जनता के अनुकूल बनाए रखने की आवश्यकता है।

लखीमपुर जैसे क्षेत्र जहां ब्रॉड गेज बनने के बावजूद सुविधाओं का अभाव है, वहां रेलवे को प्राथमिकता के साथ सुविधाएं बढ़ानी चाहिए। इतिहास से सबक लेते हुए रेलवे को यह समझना होगा कि केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण से योजनाएं बनाना पर्याप्त नहीं है। वास्तविक विकास वह है, जो हर व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करे और देश के हर कोने तक पहुंच बनाए।

रेलवे को एक बार फिर "जनता की रेल" बनने के अपने मूल उद्देश्य को अपनाना होगा, जहां विकास और सुविधाओं का लाभ हर वर्ग तक पहुंचे।

Anoop Singh - Lifestyle coach & Motivational Speaker

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Comments