महाकुम्भ नगर प्रयागराज के त्रिवेणी संगम की तरह प्रसिद्ध है यहां के तीर्थ पुरोहित(पंडे)और उनके झंडे, अत्यंत प्राचीन इतिहास है यहां के प्रयागवाल समाज का उन्ही की तरह प्राचीन इतिहास है उनके झंडो का
महाकुम्भ नगर प्रयागराज गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान ध्यान पूजा कर मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले प्रयागराज के तीर्थ पुरोहित तीर्थो के राजा प्रयागराज की पहचान है। प्राचीन काल से इस जनपद को तीर्थो का राजा प्रयाग नाम से ही जाना जाता रहा है।दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं के परिजन की अस्थियों को पवित्र त्रिवेणी के जल में प्रवाहित कराए जाने के पूर्व समस्त कर्मकांड इन तीर्थ पुरोहितों के द्वारा करवाया जाता है।जैसे इनका इतिहास प्राचीन है और उसी तरह इनके झंडो का इतिहास भी पुराना है। इनके तखत को ढूंढने में दिक्कत ना हो इसके लिए तीर्थ पुरोहितों ने अपने झंडे बना रखे हैं जो बड़े बड़े बॉस में लगे होने के कारण दूर से ही दिखाई देते है। इसमें हाथी, घोड़ा, ऊंट, मछली, कुल्हाड़ी, रेल, राधाकृष्ण,पान के पत्ते, कटार, मछली, 5 सिपाही नारियल, चांदी का नारियल, महल, सोने का छत्र, सुहाग का पूरा, चार खूंट, रेडियो, हरा झंडा, सोटा-बेना, लौकी, बोतल, गणेश जी, चार चक्र, गौमुखी, रुद्राक्ष, पान, महालक्ष्मी, तबेलिया, हनुमान जी, आदि को बनाया जाता है। चिह्न का निर्धारण प्रयागवाल की ओर से किया जाता है
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