तुलसीदास जयंती हिन्दू धर्म के महान संत तुलसीदास जी के जन्म दिन के रूप में मनाई जाती है. महाकवि तुलसीदास जी भगवान श्री राम के बहुत बड़े भक्त के रूप में जाने जाते हैं। इन्होने अपनी रचनाओं के माध्यम से भगवान राम के जीवन के बारे में लोगों को अवगत करवाया. भगवान राम के जीवन पर आधारित रामचरितमानस की रचना भी महाकवि तुलसीदास जी के द्वारा की गई है. उन्होंने रामचरितमानस के अलावा कुल 12 पुस्तकों की रचना की गई थी. उन्होंन अपनी सभी पुस्तको को अवधी भाषा मे लिखा था।
महाकवि तुलसीदास सगुण भक्ति के कवि थे. कथाओं अनुसार तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के राजपुर गांव में 1532 ईस्वी में हुआ था. कुछ जगहों पर इनके जन्म का साल 1543 ईं. भी बताया गया है. उनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था. कहा जाता है कि जन्म लेते ही उनके मुंह से पहला शब्द राम निकला था जिसकी वजह से उनका नाम रामबोला पड़ गया।तुलसीदास भगवान राम के प्रति अपनी महान भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. मूल रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का पुनर्जन्म माना जाता था. तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी शहर में बिताया. वाराणसी में गंगा नदी पर प्रसिद्ध तुलसी घाट का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है. माना जाता है कि भगवान हनुमान को समर्पित प्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर की स्थापना तुलसीदास ने की थी. तुलसीदास जयंती के दिन रामजी और हनुमान जी के मंदिरों महाकाव्य रामचरितमानस का पाठ किया जाता है. साथ ही इस दिन कई स्थानों पर ब्राह्मणों को भोजन कराने का भी परंपरा है।
राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
बरषत वारिद-बूंद गहि, चाहत चढ़न अकास॥
इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि राम-नाम का आश्रय लिए बिना जो लोग मोक्ष की आशा करते हैं अथवा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चारों परमार्थों को प्राप्त करना चाहते हैं. वह बरसते हुए बादलों की बूंदों को पकड़ कर आकाश में चढ़ जाना चाहते हैं. भाव यह है कि जिस प्रकार पानी की बूंदों को पकड़ कर कोई भी आकाश में नहीं चढ़ सकता वैसे ही राम नाम के बिना कोई भी परमार्थ को प्राप्त नहीं कर सकता है।
तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुख, दास भए भव पार॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि जिनकी श्री राम में ममता और सब संसार में समता है, जिनका किसी के प्रति राग, द्वेष, दोष और दुःख का भाव नहीं है, श्री राम के ऐसे भक्त भव सागर से पार हो चुके हैं।
तुलसी साथी विपति के, विद्या, विनय, विवेक।
साहस, सुकृत, सुसत्य-व्रत, राम-भरोसो एक॥
कवि कहते हैं कि जिसमें विद्या, विनय, ज्ञान, उत्साह, पुण्य और सच बोलना और विपत्ति में साथ देना आदि गुण सिर्फ एक भगवान राम के भरोसे से ही प्राप्त हो सकते हैं।
राम-नाम-मनि-दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहिरौ, जौ चाहसि उजियार॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि तुम अपने हृदय के अंदर और बाहर दोनों ओर प्रकाश चाहते हो तो राम-नाम रूपी मणि के दीपक को जीभ रूपी देहली के द्वार पर धर लो. दरवाज़े की चौखट पर अगर दीपक रख दिया जाए तो उससे घर के बाहर और अंदर दोनों तरफ रोशिन हो जाती है. इसी तरह जीभ मानो शरीर के अंदर और बाहर दोनों ओर की देहली है. इस जीभ रूपी देहली पर यदि राम-नाम रूपी मणि का दीपक रख दिया जाय तो हृदय के बाहर और अंदर दोनों ओर अवश्य प्रकाश हो ही जाएगा।
ग मगन सब जोग हीं, जोग जायँ बिनु छेम।
त्यों तुलसी के भावगत, राम प्रेम बिनु नेम॥
इस दोहे का भाव है कि सभी लोग योग में अर्थात अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति करने में लगे हुए हैं. लेकिन प्राप्त वस्तु की रक्षा का उपाय किए बिना योग व्यर्थ है. इसी प्रकार श्री राम जी के प्रेम बिना सभी नियम व्यर्थ हैं।तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अलावा सतसई, बैरव रामायण, विनय पत्रिका, वैराग्य संदीपनी, पार्वती मंगल, गीतावली, कृष्ण गीतावली आदि ग्रंथों की रचना की। लेकिन उनके रामचरितमानस ग्रंथ को सबसे ज्यादा ख्याति प्राप्त हुई।
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