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बुधवार, 26 जून 2024

काव्य कलिका : " मेघा बरसो हर मन हर्षो" - रामG

" मेघा बरसो हर मन हर्षो"
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गरज-कौंध, चमक-दमक के चपला नील गगन में 
बहुत डराती, रह रह घबराती चिंता भरे है मन में.!

बारिश आई, हर मन भाई पर कोलाहल ये कैसा
गरजे बरसें बदरा काले मंजर बवंडर के ही जैसा

हों ना अनहोनी, जन-धन हानि ना ही, वज्रपात
सब ही हैं सताए नौ तपा के जलाए, रुके संताप

काले मेघा बरसो, हर मन हर्षो पर अति ना करना
हुए सब हर्षित पा तपिश से मुक्ति, कुदृष्टि न करना

सबको था कब से इंतजार बरसे गगन से जल धार
अब आए हो राहत लाए हो, मान लेना विनय हमार 

                              ✍🏻रामG 
                        राम मोहन गुप्त 'अमर'

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