बदायूं के स्काउट भवन में आयोजित कवि सम्मेलन एवं पुस्तक विमोचन समारोह में जुटे तमाम साहित्यकार
बदायूं। काव्यदीप हिंदी साहित्यिक संस्थान द्वारा स्व.वीरेंद्र कुमार सक्सेना जी की स्मृति में सम्मान समारोह, पुस्तक विमोचन कार्यक्रम एवं कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। संस्थान की संस्थापिका दीप्ति सक्सेना के काव्य संग्रह 'दीप्ति-अंदर की रौशनी' के विमोचन के साथ ही मुख्य अतिथि कारागार अधीक्षक विनय कुमार ने सभी कवियों को अंगवस्त्र , श्री फल और सम्मान पत्र भेंटकर सम्मानित किया।
अंतर्राष्ट्रीय कवि नरेंद्र 'गरल' की अध्यक्षता में सम्पन्न कार्यक्रम कार्यक्रम का संचालन सुनील शर्मा 'समर्थ' ने किया।
पीलीभीत से आये हास्य कवि उमेश त्रिगुणायत अद्भुत ने कहा,
"सिर की छत रोज़ी रोटी का साधन हिल मिल बेच दिया।
अरमानों के क़ातिल ने अरमाँ का तिल तिल बेच दिया"।
कवयित्री और काव्यदीप की संस्थापिका दीप्ति सक्सेना ने कहा,
"थका सूर्य भी चढ़ते-चढ़ते,उठो! नीम की छाँव चलो।
घड़ी- घड़ी अब जीना दूभर, लौट शहर तुम गाँव चलो"।
अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र गरल ने पढ़ा,
"पानी अपनी सतह बदलता रहता है।
मंज़र अपनी वजह बदलता रहता है।
कोई धूप नहीं टिकती है पत्तों पर
सूरज अपनी जगह बदलता रहता है"।
कड़क रामपुरी ने पढ़ा
"बेटियां बेटों से कम नहीं
अगर बेटे नहीं हैं तो कोई ग़म नहीं।"
मुरादाबाद की गीतांजलि दक्ष ने पढ़ा,
"न रोने की वजह थी तब, न हँसने का बहाना था।
बड़ा दुख दर्द देता है, वो मौसम ही सुहाना था"।
हाथरस से आए संजीव हाथरसी ने पढ़ा,
"ममता की वो मुरत है, सबसे खूबसूरत है।।
वो ही दिल में रहनी है,हाँ वो मेरी पत्नी है"।
गाजियाबाद की निशा सक्सेना ने कहा ,
"माता से जीवन मिलता पिता बनता आधार ।
माता घर का सुख है तो पिता जग संसार"।
उझानी से पधारीं अंजली श्रीवास्तव ने कहा ,
"तुम्हारे बिन यहाँ हम तो गुज़ारा कर न पायेंगे,
बसे हो दिल में तुम ऐसे किनारा कर न पायेंगे।"
शाहजहांपुर से पधारे डॉ प्रदीप वैरागी ने पढ़ा,
"कहां गए बगिया के माली, गुमशुम है फूलों की डाली।
सूना-सूना है घर आंगन,
तुम्हें पुकारे ये मन पावन।
रंभाती रहती है गैया,
राह देखती कबसे मैया।"
रिठौरा बरेली से पधारे कवि राजेश शर्मा ने कहा ,
"यूँ ही रोने दे मुझे या तो हँसाने आ जा।
मेरे महबूब खफ़ा हूँ तू मनाने आ जा"।
फिरोजाबाद से पधारे कुलदीप भारद्वाज ने कहा
"जरा वक्त बदलने दो सितारे बदल जायेंगे,
नजर बदलने दो नज़ारे बदल जायेंगे।"
बरेली से पधारे अभिषेक अग्निहोत्री ने पढ़ा ,
"करूं मैं भी चरण वंदन तो मैं सबसे चहेता हूं,
हुनर से गर धनुष तोड़ूं ,तो सब फरसा निकालेंगे"।
बरेली के कवि मनोज सक्सेना "मनोज" ने फरमाया,
"बच्चे पिता के आँखों के अधूरे सपने होते हैं,जिनके लिए वे हर समय तकलीफें सहते हैं"।
कवि श्रीपाल शर्मा इदरीशपुरी ने पिता के सम्मान में कहा
"अपने मन की पीड़ा को मैं किसको रोज सुनाऊँ
तुम बिन रोये मेरा मन ये किसको मैं बतलाऊँ।
मै गीत तुम्हारे गाऊँ पिताजी"।
कार्यक्रम में शैलेन्द्र मिश्रा,
पल्लवी शर्मा, गौरव सक्सेना, राजवीर सिंह तरंग,विनोद सक्सेना'बिन्नी',अमन मयंक, अचिन मासूम,आदि ने भी काव्यपाठ किया।
कार्यक्रम में मंजू सक्सेना, सुरेंद्र मौर्य, ओमकुमारी, सुरेश बाबू शाक्य, राजबाला शाक्य, आलोक शाक्य,ज्योति दीक्षित,अनिका आदि उपस्थित रहे।
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