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मंगलवार, 22 अगस्त 2023

धार्मिक / अद्भुत ! एक ऐसा मंदिर जो पूरे साल बस एक ही दिन खुलता है, रक्षाबंधन के मौके पर खुलता है मंदिर

उत्तराखण्ड के चमोली जिले में 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बंशीनारायण मंदिर एक अकेला ऐसा मंदिर है जो साल में मात्र एक दिन के लिए रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है और कुंवारी और विवाहिताएं वंशीनारायण जी को राखी बांधने के बाद ही अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधती है । सूर्यास्त होते ही मंदिर के कपाट एक साल के लिए फिर से बंद कर दिए जाते है।
चमोली जिले के हिमालयी क्षेत्र में स्थित वंशीनारायण मंदिर तक पहुंचना थोड़ा मुश्किल है पीपलकोटी से उर्गम घाटी तक पहुंचने के बाद आगे 12 किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। पांच किलोमीटर दूर तक फैले मखमली घास के मैदानों को पार करते ही सामने नजर आता है प्रसिद्ध पहाड़ी शैली कत्यूरी में बना वंशीनारायण मंदिर।दस फुट ऊंचे मंदिर में भगवान की चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है। परंपरा के अनुसार यहां मंदिर के पुजारी राजपूत हैं। वर्तमान पुजारी कलगोठ गांव के बलवंत सिंह रावत जी है उनके मुताबिक बामन अवतार धारण कर भगवान विष्णु ने दानवीर राजा बलि का अभिमान चूर कर उसे पाताल लोक भेजा। बलि ने भगवान से अपनी सुरक्षा का आग्रह किया। इस पर श्रीहरि विष्णु स्वयं पाताल लोक में बलि के द्वारपाल हो गए। ऐसे में पति को मुक्त कराने के देवी लक्ष्मी पाताल लोक पहुंची और राजा बलि के राखी बांधकर भगवान को मुक्त कराया। किवदंतियों के अनुसार पाताल लोक से भगवान यहीं प्रकट हुए। माना जाता है कि भगवान के राखी बांधने से स्वयं श्रीहरि उनकी रक्षा करते हैं। रक्षाबंधन को आसपास के दर्जनों गांवों के लोग यहां एकत्र होकर इस अद्भुत क्षण के गवाह बनते है।।चमोली के उर्गम घाटी के अंतिम गाव बांसा के प्रसिद्ध श्री वंशीनारायण मंदिर 10 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है! 12,000 फीट की ऊँचाई पर इस स्थान पर पहुचाने के लिए बांसा से मुल्ला /  तप्पड (2किलोमीटर) कुड्मुला (1 किलोमीटर) बडजिखाल (2 किलोमीटर), नक्चुना (2 किलोमीटर) होते हुए वंशी नारायण मंदिर (3 किलोमीटर) पंहुचा जा सकता है! बांसा के वंशी नारायण, जंगल वाला मार्ग है जो विभिन्न जड़ी बूटियों, भोज पत्र के व्रक्षो, सिमरु  के अनेक प्रजाति के झाडी नुमा वृक्षों जिनमे सफ़ेद, हल्का बैगनी रंग के फूल दिखाई पड़ते है! जो देखने में बुराश के फूल की तरह दिखाई देता है! 
बांसा गाव के श्री वंशीनारायण (10 किलोमीटर) की यह यात्रा खड़ी चडाई युक्त है! मंदिर तक पहुचने के लिए बांसा से दो पहाड़ की चोटियों पार कर तीसरे पहाड़ ऊँचाई तक पहुचना होता है! इस मार्ग में स्थान स्थान पर कुछ विशिष्ट प्रकार पक्षियों का कलरव इस शांत वातावरण में सुमधुर संगीत प्रतुत करता है! बांसा के बाद 10 किलोमीटर के भीतर न ही कोई गांव है और न ही कोई आबादी, सिर्फ प्रकृति के सान्ध्य में चलते हुए पक्षियों का कलरव संगीत  मात्र ही सुनायी पड़ता है!

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