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सोमवार, 30 जनवरी 2023

विचार प्रवाह / विरासत में पिता से जो मिला उसी से संतुष्ट हो युवा

             ( दैनिक जनजागरण न्यूज)
  ● पुराने लोग कहावत कहते हैं कि पूत कपूत तो क्यों धन संचय और पूत सपूत तो क्यों धन संचय।
      "आपने मुझे अब तक दिया क्या है?"  पुत्र द्वारा कही गयी इस बात ने पिता के दिल को झकझोर दिया था। अपनी गरीबी और लाचारी पर विवशता प्रकट करते हुए पिता ने कहा "मैंने अपनी क्षमता अनुरूप वह सब किया जो पिता को करना चाहिए। तुम लोगों को पढ़ाया लिखाया, शादी की और हमसे क्या चाहते हो। पुत्र को शायद पिता के इन शब्दों से संतुष्टि नहीं मिली उसने पुनः कहा, "यदि आपने कोई जरिया बनाया होता तो हमें भटकना नहीं पड़ता। पिता ने भी जवाब दिया हमने तुम्हें कुछ नहीं दिया तो तुम्हीं अपने बेटों के लिए कुछ इकट्ठा करके दे दो। पिता पुत्र की यह नोकझोंक काफी देर तक चलती रही। मैं भी एक किनारे खड़ा होकर यह सब सुन रहा था।
   इसके उलट एक दूसरा मामला मेरे सामने आया था। एक युवा से एक व्यक्ति ने कहा, "आपके पिता धीरे धीरे पूरा खेत बेचे दे रहे हैं। ध्यान नहीं दोगे तो सब बेच डालेंगे। पुत्र का जवाब सुनकर मैं भी दंग रह गया। उसने कहा, "मेरे पिता हैं। वे अपने द्वारा बनायी गयी संपत्ति बेच रहे हैं। आपको कष्ट क्यों हो रहा है। सुझाव देने वाला व्यक्ति खीझता हुआ चला गया। व्यक्ति भी अपनी मस्ती की चाल में चलता हुआ चला गया। यद्यपि आज ऐसे लोगों की संख्या उंगलियों पर गिनने योग्य ही होगी।
    क्षेत्र में तमाम लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने विरासत में मिली अपनी संपत्ति को अपने निठल्लेपन के कारण बेच दिया और आज दूसरों के यहां मेहनत मजदूरी करने को विवश है। तमाम लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने पिता से कुछ भी न मिलने के बावजूद अपनी मेहनत के बल पर स्वयं को स्थापित किया और सम्मानजनक जीवन जी रहे हैं। अपनी मेहनत पर विश्वास करने वाले लोग कभी भी अपने पिता से कुछ मिलने की अपेक्षा नहीं करते हैं क्योंकि कोई भी पिता अपनी आर्थिक स्थितियों के अनुसार अपने पुत्र को वह सब कुछ देने का प्रयत्न करता है जो उसके लिए संभव है। 
   शायद इन्हीं स्थितियों को देखते हुए पुराने लोग एक कहावत कहते हैं कि पूत कपूत तो क्यों धन संचय और पूत सपूत तो क्यों धन संचय। जो अपनी मेहनत और लगन के बल पर ऊंचाइयों तक पहुंचे उन्होंने कभी अपने पिता से कुछ ना मिलने की शिकायत कभी नहीं की जो अपनी अकर्मण्यता के कारण के कारण जीवन में असफल हुए उन्होंने सदैव अपने पिता को ही दोष दिया। कुछ न देने का उलाहना ही दिया।
     सभी माता-पिता अपने बच्चों को दुनिया के सारे सुख देना चाहते हैं। अपनी क्षमता अनुरूप उन्हें पढ़ा लिखाकर समाज में पहचान दिलाना चाहते हैं हाथों की उंगलियों की तरह ही कोई पुत्र शिक्षा और अपनी मेहनत के बल पर आगे बढ़ जाता है तो कोई  पीछे रह जाता है। मानवीय स्वभाव के कारण पिता का लगाव भी उसी पुत्र के साथ अधिक रहता है जो उसे कमजोर दिखाई देता है। ऐसे में दूसरे पुत्र को लगता है कि पिता मुझ पर ध्यान ही नहीं देते हैं और उन्हें जीवन भर ताना देते रहते हैं। यद्यपि पिता द्वारा निरंतर मिलने वाले सहयोग के कारण ही पुत्र में आगे बढ़ने की लालसा भी  दिखायी नहीं देती है और वह स्वयं कमजोर होता चला जाता है इसलिए माता-पिता से कुछ पाने की लालसा रखने की बजाय उनका आशीर्वाद ही प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। 
     जिन माता पिता ने जन्म देकर शैशवावस्था से लेकर युवावस्था तक अपने खून पसीने की कमाई खर्च की हो उनसे इस प्रकार की शिकायत कहीं से भी उचित नहीं कहीं जा सकती हैं। माता पिता के सामने स्वयं को कमजोर और गरीब साबित करने से निश्चित ही उनके हृदय को चोट पहुंचती होगी क्योंकि कोई भी माता-पिता अपने बच्चे को अपने से ऊपर उठता हुआ देखकर खुशी महसूस करते हैं। अपने बच्चों की प्रगति को देखकर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। हम भले ही यह महसूस करते हैं कि माता पिता हमसे प्यार नहीं करते हैं परंतु वास्तविकता यह है कि अपने बच्चों के चेहरे की चमक गायब होने से सबसे ज्यादा चिंता भी उन्हें होती है। विरासत में जो भी मिला उस पर अफसोस करने की बजाय गर्व करना ही बेहतर है।
                   लेखक : धर्मवीर गुप्ता

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