मैं कुर्सी पर बैठा हुआ गहरे चिंतन में खोया था, तभी अचानक मेरे छोटे बेटे शिवांश ने पिंजरे में बंद तोते को लाकर मेरी बाँह पर रख दिया। तोता बैठकर मुझे देखने लगा। खुद को पिंजरे से स्वतंत्र पाकर भी उसने उड़कर दूर जाने का प्रयास नहीं किया। उसकी चहक गायब थी। शांत अवस्था में बाँह पर बैठा देख मैं भी उसकी ओर देखने लगा तथा चिन्तन करने को विवश हो गया कि जो पंछी उन्मुक्त गगन में उड़ने को बेताब रहता है वहीं पंछी उड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था।
महज एक सीमित दायरे में चहल कदमी कर रहा था। शायद इसका कारण कई महीने से एक ही पिंजरे में बंद होकर रहना था। उसकी यह स्थिति देखकर मेरे मन में यह विचार उठा कि ठीक इसी तरह युवा भी एक निश्चित दायरे में कैद होकर रह गया है। विद्यार्थी जीवन पास होने के लिए अध्ययन करने, फुर्सत के क्षणों में सोशल मीडिया का अपनी तरह से उपयोग करने में बिता देता है। उसके बाद गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर अपनी समस्याओं से जूझता हुए महज रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष करता हुआ दिखाई देता है। उसके अंदर भी बंद पिंजरे के पंछी की तरह न तो कोई उत्साह दिखाई देता है और न ही ग्राम समाज और राष्ट्र के लिए कुछ करने की ललक। इस कारण न तो गांव, समाज से सामाजिक बुराइयों का अंत हो पा रहा है और न ही राष्ट्र को नशा, पर्यावरण प्रदूषण, दहेज प्रथा, बेरोजगारी, बढ़ते अपराध जैसी समस्याओं से मुक्ति मिल पा रही है। यह स्थिति भारत जैसे विकासशील देश के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती है। युवाओं पर ही किसी भी देश का भविष्य निर्भर है। जिस देश के युवा चिंतनशील गांव समाज राष्ट्र के प्रति समर्पित होंगे। उस देश को विकसित होने से कोई शक्ति नहीं रोक सकती है। वह देश दिनोंदिन उन्नति के पथ पर अग्रसर रहता है परंतु जिस देश के युवा अपनी शक्ति का उपयोग गांव समाज राष्ट्र के लिए नहीं करते हैं। वह देश अविकसित और विकासशील ही बने रहते हैं। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा भारत को 2020 तक एक विकसित राष्ट्र देखने की कल्पना यदि पूर्ण रूप से साकार न हो सकी तो इसका कारण युवा शक्ति के उपयोग की सही दशा दिशा न बन पाना ही है।
भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपना जीवन राष्ट्र और समाज को समर्पित करते समय यह कल्पना अवश्य की होगी कि उनका जीवन आगे आने वाले युवाओं के लिए प्रेरणादायी होगी। युवा आजाद देश में समस्या मुक्त राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार होंगे। बंद पिंजरे के तोते की तरह युवाओं की स्थिति देखकर शायद उनकी आत्माओं को सबसे अधिक कष्ट होता होगा। शिक्षा व्यवस्था से जुड़े सभी लोगों को सामूहिक प्रयासों द्वारा शिक्षा की ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है जिससे युवाओं की शक्ति का लाभ राष्ट्र को अधिक से अधिक मिल सके। देश के युवाओं में राष्ट्र और समाज के लिए कुछ करने का जज्बा हो। ऐसा संभव हुआ तो निश्चित ही राष्ट्र पुनः सोने की चिड़िया कहलायेगा और विश्व का सिरमौर होगा।
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